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मैं चाहता हूँ कि आप जान लें कि मैं आपके लिए किस क़दर जाँफ़िशानी कर रहा हूँ—आपके लिए, लौदीकियावालों के लिए और उन तमाम ईमानदारों के लिए भी जिनकी मेरे साथ मुलाक़ात नहीं हुई। मेरी कोशिश यह है कि उनकी दिली हौसलाअफ़्ज़ाई की जाए और वह मुहब्बत में एक हो जाएँ, कि उन्हें वह ठोस एतमाद हासिल हो जाए जो पूरी समझ से पैदा होता है। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वह अल्लाह का राज़ जान लें। राज़ क्या है? मसीह ख़ुद। उसी में हिकमत और इल्मो-इरफ़ान के तमाम ख़ज़ाने पोशीदा हैं।
ग़रज़ ख़बरदार रहें कि कोई आपको बज़ाहिर सहीह और मीठे मीठे अलफ़ाज़ से धोका न दे। क्योंकि गो मैं जिस्म के लिहाज़ से हाज़िर नहीं हूँ, लेकिन रूह में मैं आपके साथ हूँ। और मैं यह देखकर ख़ुश हूँ कि आप कितनी मुनज़्ज़म ज़िंदगी गुज़ारते हैं, कि आपका मसीह पर ईमान कितना पुख़्ता है।
मसीह में ज़िंदगी
आपने ईसा मसीह को ख़ुदावंद के तौर पर क़बूल कर लिया है। अब उसमें ज़िंदगी गुज़ारें। उसमें जड़ पकड़ें, उस पर अपनी ज़िंदगी तामीर करें, उस ईमान में मज़बूत रहें जिसकी आपको तालीम दी गई है और शुक्रगुज़ारी से लबरेज़ हो जाएँ।
मुहतात रहें कि कोई आपको फ़लसफ़ियाना और महज़ फ़रेब देनेवाली बातों से अपने जाल में न फँसा ले। ऐसी बातों का सरचश्मा मसीह नहीं बल्कि इनसानी रिवायतें और इस दुनिया की क़ुव्वतें हैं। क्योंकि मसीह में उलूहियत की सारी मामूरी मुजस्सम होकर सुकूनत करती है। 10 और आपको जो मसीह में हैं उस की मामूरी में शरीक कर दिया गया है। वही हर हुक्मरान और इख़्तियारवाले का सर है।
11 उसमें आते वक़्त आपका ख़तना भी करवाया गया। लेकिन यह ख़तना इनसानी हाथों से नहीं किया गया बल्कि मसीह के वसीले से। उस वक़्त आपकी पुरानी फ़ितरत उतार दी गई, 12 आपको बपतिस्मा देकर मसीह के साथ दफ़नाया गया और आपको ईमान से ज़िंदा कर दिया गया। क्योंकि आप अल्लाह की क़ुदरत पर ईमान लाए थे, उसी क़ुदरत पर जिसने मसीह को मुरदों में से ज़िंदा कर दिया था। 13 पहले आप अपने गुनाहों और नामख़तून जिस्मानी हालत के सबब से मुरदा थे, लेकिन अब अल्लाह ने आपको मसीह के साथ ज़िंदा कर दिया है। उसने हमारे तमाम गुनाहों को मुआफ़ कर दिया है। 14 हमारे क़र्ज़ की जो रसीद अपनी शरायत की बिना पर हमारे ख़िलाफ़ थी उसे उसने मनसूख़ कर दिया। हाँ, उसने हमसे दूर करके उसे कीलों से सलीब पर जड़ दिया। 15 उसने हुक्मरानों और इख़्तियारवालों से उनका असला छीनकर सबके सामने उनकी रुसवाई की। हाँ, मसीह की सलीबी मौत से वह अल्लाह के क़ैदी बन गए और उन्हें फ़तह के जुलूस में उसके पीछे पीछे चलना पड़ा।
16 चुनाँचे कोई आपको इस वजह से मुजरिम न ठहराए कि आप क्या क्या खाते-पीते या कौन कौन-सी ईदें मनाते हैं। इसी तरह कोई आपकी अदालत न करे अगर आप हिलाल की ईद या सबत का दिन नहीं मनाते। 17 यह चीज़ें तो सिर्फ़ आनेवाली हक़ीक़त का साया ही हैं जबकि यह हक़ीक़त ख़ुद मसीह में पाई जाती है। 18 ऐसे लोग आपको मुजरिम न ठहराएँ जो ज़ाहिरी फ़रोतनी और फ़रिश्तों की पूजा पर इसरार करते हैं। बड़ी तफ़सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई बातें बयान करते करते उनके ग़ैररूहानी ज़हन ख़ाहमख़ाह फूल जाते हैं। 19 यों उन्होंने मसीह के साथ लगे रहना छोड़ दिया अगरचे वह बदन का सर है। वही जोड़ों और पट्ठों के ज़रीए पूरे बदन को सहारा देकर उसके मुख़्तलिफ़ हिस्सों को जोड़ देता है। यों पूरा बदन अल्लाह की मदद से तरक़्क़ी करता जाता है।
मसीह के साथ मरना और ज़िंदगी गुज़ारना
20 आप तो मसीह के साथ मरकर दुनिया की कुव्वतों से आज़ाद हो गए हैं। अगर ऐसा है तो आप ज़िंदगी ऐसे क्यों गुज़ारते हैं जैसे कि आप अभी तक इस दुनिया की मिलकियत हैं? आप क्यों इसके अहकाम के ताबे रहते हैं? 21 मसलन “इसे हाथ न लगाना, वह न चखना, यह न छूना।” 22 इन तमाम चीज़ों का मक़सद तो यह है कि इस्तेमाल होकर ख़त्म हो जाएँ। यह सिर्फ़ इनसानी अहकाम और तालीमात हैं। 23 बेशक यह अहकाम जो घड़े हुए मज़हबी फ़रायज़, नाम-निहाद फ़रोतनी और जिस्म के सख़्त दबाव का तक़ाज़ा करते हैं हिकमत पर मबनी तो लगते हैं, लेकिन यह बेकार हैं और सिर्फ़ जिस्म ही की ख़ाहिशात पूरी करते हैं।